________________
शब्दार्थ)
सूत्र
भावार्थ
4093 पंचमाङ्ग विवाह पण्यत्ति ( भगवती ) सत्र 20
पृथ्वी का अ० अधिपति म० मनुष्येन्द्र से वह ते ० इसलिये जा० यावत् न० नरदेव से वह के० कैसे मं० भगवन् ध० धर्मदेव गो० गौतम जे० जो अ० अनगार भ० भगवन्त इ० ईर्यासमितिवाले जा० यावत् गु० {गुप्तब्रह्मचारी से ० वह ते० इस लिये जा० यावत् घ० धर्मदेव से वह के कैसे भं० भगवन् ए० ऐसा वु' कहा जाता है दे० देवाधिदेव गो० गौतम जे० जो अ० अरिहंत भ० भगवन्त उ० उत्पन्न णा० ज्ञान (६० दर्शन धारक जा० यावत् सः सर्वदर्शी से० वह ते० इसलिये जा० यावत् दे० देवाधिदेव से० वह नरदेवा से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ धम्मदेवा ? धम्मदेवा गोयमा ! जे इमे अणगारा भगवंतो इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारी से तेणट्टेणं जाव धम्मदेवा सेकेट्टे भंते ! एवं बुवइ देवाधिदेवा ? देवाधिदेवा गोयमा ! जे इमे अरहंता भगवंतो उप्पण्ण णाणदंसणधरा जाव सव्यदरिसी से तेणट्टेणं जाव देवाधिदेवा से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ - भावदेवा ? मावदेवा गोयमा ! जे इमे भवणवई रत्नों प्रधान चौदह रत्न, नवनिधान समृद्ध भंडार वाला है बत्तीस हजार राजा जिनकी सेवा करते होवे समुद्रकी मेखला पर्यंत के स्वामी, मनुष्य के इन्द्र जो होते हैं वे नरदेव कहाते हैं. अहो भगवन् ! { धर्मदेव किसे कहते हैं ? अहो गौतम! जो अनगार ईर्ष्यासमिति युक्त यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हैं, वे धर्मदेव कहाते ६. अहो भगवन् ! देवाधिदेव किसे कहते हैं ? अ गौतम ! उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक यावत् सर्व दर्शी
वहशत का नववा उद्देशा
१७६८