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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी के
से वह के० कैसे भं• भगवन् भ० भविक द्रव्यदेव भ० भविक द्रव्यदेव गो. गौतम जे० जो भ० भविक पं० पंगेन्द्रिय तिः तियेच १० मनुष्य दे देश में उ० उत्पन्न होने वाले से वह ते• इसलिये गो गौतम ९. ऐसा कु. कहा जाता है भ० भविक द्रव्यदव से वह के कैसे न नरदेव गो० गौतम जे. जो रा० राजा चा चातुरंत च० चक्रवर्ती उ० उत्पन्न स. समस्त च० चक्ररत्न प० प्रधान ण. नवनिधि म. समृद्धि को० कोश २० बत्तीस रा. राजा १० पधान स० सहस्र अ० सेवा करने वाले सा• सागर मे०
भावयदव्यदेवा ? भवियदव्वदेवा गोयमा ! जे भविय पचिदिय तिरिक्ख जोणिएवा मणुस्सेवा देवेसु उववजित्तए से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ भवियदव्वदेवा ॥ से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ नरदेवा ? नरदेवा गोयमा ! जे इमे रायाणो चाउरंत चक्कवट्टी उप्पण्ण सम्मत्त चक्कर यणप्पहाणा णवणिहि पइणो समिद्धकोसा, बत्तीसं
रायवर सहस्साणुयातमग्गा, सागरवर महिलाहिपतिणो मणुस्सिंदा, से तेणटेणं जाव १४ देवाधिदेव और ६ भावदेव ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! भावेकद्रव्य देव क्यों कहा गया ? अहो गौतम ! गोर्यच पंचेन्द्रिय व मनुष्य में देवों का आयुष्य बांधकर देवलोक में उत्पन्न होने को योग्य होता है वह भविक द्रव्यदेव कहाता है. अहो भगवन् ! नरदेव किसे कहते हैं ? अहो गौतम ! जो समस्त भरत क्षेत्र का राजा, चारों दिशा का चक्रवर्ती, चक्ररत्नादि सात एकेन्द्रिय व सेनापति आदि मात पंचेन्द्रिय
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ