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सिद्धवजं जाव अपराजिय देवोहितोवि उववज्जति । णरदेवाणं भंते! कओहिंतो उववजति किंणेरइए पुच्छा?गोयमा!णेरइएहितो उववजंति,णो तिरि णो मणु, देवहिती उववजति॥ जइ णेरइएहितो उववजंति किं रयणप्पभा पुढवि णेरइएहितो उववजंति जाव अहे १७६७ सत्तमाए पुढविए णेरइएहितोवि उववज्जति ? गोयमा ! रयणप्पभा पुढविणेरइएहितो उववज्जति, णो सक्कर जाव णो अहे सत्तम पुढवि णेरइएहितो उववजंति । जइ देवहितो उववज्जति किं भवणवासी देवहितो उववज्जति वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिय
देवोहितो उववजंति ? गोयमा ! भवणवासि देवहितो उववजंति, वाणमंतर एवं सव्वभावार्थ भमि, अंतरद्वीप व सर्वार्थ सिद्ध में से चवकर भविक द्रव्य देव नहीं होते हैं क्यों की अकर्म भूमि व अंतर IE द्वीप के मनुष्य देवलोक में उत्पन्न होते हैं और सर्वार्थ सिद्ध वाले मनुष्य में आकर सिद्ध होते हैं. अहो
भगवन् ! नरदेव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या नरक में से उत्पन्न होते हैं यावत् देवलोक में से । उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम! नरक व देव इन दोनों में से नरदेव उत्पन्न होते हैं परंतु मनुष्य तिर्यंच
में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं. जब नरक में से नरदेव उत्पन्न होते हैं तो क्या रत्नप्रभा में से यावत् तमतमई । 1 प्रभा में से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! रत्नप्रभा में से उत्तल होते हैं परंतु शेष छ नरक में से नहीं ।
पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
909 बारहवा शतकका नववा उद्देशा
पान