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॥ १२ ॥ अयण्णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं अरित्ताए, वरियत्ताए, पायगत्ताए,वहगत्ताए ... पडिणीयत्ताए, पच्चामित्तत्ताए, उववण्ण पुल्वे? हंता गोयमा ! जाव अणंतखुत्तो सव्व
जीवाविणं भंते ! एवंचव ॥ १३ ॥ अयण्णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं रायत्ताएँ, जुवरायत्ताए, जाव सत्थवाहत्ताए उववण्ण पुव्वे ? हंता गोयमा ! असतिं जान अणंत खुत्तो ॥ सव्वजीवाणं एवंचेव ॥ १४ ॥ अयण्णं भंते ! जीवे सव्व जीवाणं दासत्ताए, पेसत्तार, भुयगत्ताए, भाइलगत्ताए, भोगपुरिसत्ताए, सीसत्ताए, वेसुत्ताए.
— उववण्णपुब्वे ? हंता गोयभा ! जाव अणंतखुत्तो ॥ एवं सव्यजीवावि जावः अणंत भावार्थ
माई, भगिनी, शार्या, पुत्र, पुत्री व पुत्रवधूपने क्या पहिले उत्पन्न हुवा ? हां गौतम ! अनेकवार यावत् अनंतवार उत्पन्न हुवा ॥ १२ ॥ अ हो भगवन् ! यह जीव सब जीवों के शत्रु, वैरी, घातक, वधक, प्रत्यनीक, व अमित्रपने. क्या पहिले उत्पन्न हुवा ? हां गौतम ! अनेकवार यावत् अनंतवार. जैसे एक जीवका कहा वैसे सब जीवोंका
जानना ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! यह जीव सब जीवों के राजा, युवराज. यावत् सार्थवाहपने पाहिले क्या * उत्पन्न हुवा ? हां गौतम ! अनेकवार यावत् अनंतवार उत्पन्न हुवा. ऐसे ही सब जीवों का जानना ॥१४॥ *अहो भगवन् ! यह जीवा सब जीवों के दास, प्रेपक, प्रत्यक, भागीदार, भोग पुरुष, शिष्य व द्वेष्यपने
• अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादूर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*