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पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र
वेमाणियावासंसि, पुढवीकाइया सेसं जहा असुरकुमाराणं जाव अणंतखुत्तो णो चवणं देवित्ताए. एवं सव्वजीवावि ॥ एवं जाव आणयपाणएसु एवं आरणच्चुएसवि अयण्णं भंते! जीवे तिसुवि अट्ठारसुत्तरेसु गेविजगविमाणावाससएसु एवंचेव ॥१०॥ अयण्णं भंते! जीवे पंचसु अणुत्तर विमाणेसु एगमेगंसि अणुत्तर विमाणांस पुढवि तहेव जाव अणंतखत्तो, णो चेवणं देवत्ताए देवित्ताए एवं सव्वजीवावि ॥ ११ ॥ अयण्णं । "भंते! जीवे सव्वजीवाणं माइत्ताए, पित्तित्ताए, भाइत्ताए, भागिणित्ताए, भजात्ताए,
पुत्तत्ताए, धूयत्ताए, सुण्हत्ताए, उबवण्ण पुव्वे ? हंता गोयमा ! जाव अणंत खुत्तो गौतम ! अनेकवार व अनंतवार उत्पन्न हुवा. किन्तु इस में देवियोंकी उत्पत्ति नहीं होने से देवी ग्रहण नहीं है। की है. ऐभे ही सब जीवोंका जानना. जैसे सनत्कुमार का कहा वैसे ही माइन्द्रि यावत् आरण अच्युत तक का जानना. ऐसे ही नवग्रेयेयक के ३१८ विमान का जानना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! यह जीवा पांच अनुत्तर विमान के एक २ अनुत्तर विमान में पृथ्वीकायापने यावत् वनस्पतिकायापने क्या पहिले उत्पन्न हुवा ? हां गौतम ! अनेकवार व अनंतबार उत्पन्न हुवा. परंतु देव पने या देवीपने उत्पन्न नहीं है। हुवा. ऐसे ही सब जीव आश्री जानना ॥ ११॥ अहो भगवन् ! यह जीव सब जीवों की माता, पिता, ।
बारहवा शतक का सातवा उद्देशा4.98
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