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गंसि बेइंदियावासंसि पुढवीकाइयत्ताए जाव वण्णस्सइ काइयत्ताए बेइंदियत्ताए उववण्णपुव्ये? हंता गोयमा! जाव अणंतक्खुत्तो॥ सव्वजीवाविणं एवं चैव ॥ एवं जाव मणुस्सेसु, णवरं तेइंदिएसु जाव वणस्सइ काइयत्ताए. तेइंदियत्ताए चउरिदिएमु चरिंदियत्ताए एवं पर्चि दिय तिरिक्खजाणिएस पंचिंदिय तिरिक्खजोणियत्ताए, मणुस्सेसु मणुस्सत्ताए सेसं जहा बेइंदियाणं, वाणमंतरजोइसिय सोहम्मीसाणाणय जहा असुरकुमाराणं ॥ ९ ॥
अयण्णं भंते! जीधे सणंकुमारकप्प बारसंसु विमाणावास सयसहस्सेसु एगमेगंसि। भावार्थ हुचा. ऐसे ही सब जीवों का कहना. जैमे पृथ्वीकाया के दो आलापक कहे वैसे ही अप् तेऊ, वायु व.
घनस्पति के दो २ आलापक कहना ॥ ८॥ अहा भगवन् : असंख्यात बेइन्द्रिय के वास में से एक २ वास में यह जीव पृथ्वीकाया पने यावत् वनस्पति काया पने व बेइन्द्रिय पने क्या पहिले उत्पन्न हुवा ? हां गौतम! अनेकवार व अनंत वार उत्पन्न हुवा. एने ही सब जीवों का कहना. जैसे वेइन्द्रिय का कहा वैसे ही तेइन्द्रिय यावत् मनुष्य तक कहना विशेष में तेइन्द्रिय में तेइन्द्रियपने, चौरेन्द्रिय में चोरेन्द्रिय पने, तिर्यच पंचेन्द्रिय में तियेच पंचेन्द्रियपने और मनुष्यमें मनुष्यपने काना. वाणव्यंतर, ज्योतिषी व सौधर्म ईशान
का असुर कुमार जैसे कहना ॥2॥ अहो भगवन् ! यह जीव सनत्कुमार देवलोक के बारह हजार विमान में 17 मे एकरविमान में पृथ्वी कायारने यावत् वनातिकायाप ने देवतापने देवीपने क्या पहिले उत्पन्न हुवा ? अहो ।
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .