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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
यत्ताए उववरण पुढचे ? हंता गोयमा ! असतिं अदुवा अनंतखुत्तो ॥ ४ ॥ सव्त्र जीवाविणं भंते ! इमसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए णिरया तंचेव जाव अनंतखुत्तो ॥ ५ ॥ अयण्णं भंते ! जीवे सक्करप्पभाए पुढवीए पणवीसाए एवं जहा रयणप्पभाए तहेव दो आलावा भाणियव्वा, एवं जाव धूमप्पभाए।अयण्णं भंते! जीवे तमाए पुढवीए पंचूणे रियावास सयसहस्से एगमेगंसि सेसं तंचेव अयण्णं भंते! जीवे अहे सत्तमा पुढवीए पंचसु अणुत्तरेस महइ महालएसु महाणिरएस एगमगंसि णिरयावासंसि सेसं जहा रयण'पभाए || ६ || अयण्णं भंते ! जीवे चउसट्ठी असुरकुमारावास सयसहस्सेसु एग}पने, नरकपने व नारकीपने क्या पहिले उत्पन्न हुवा ? हां गौतम ! यह जीव रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावास में से एक २ नरकावास में पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकायांपने व नारकीपने अनेकवार यावत् अनंनवार पाहिले उत्पन्न हुवा || ४ || अहो भगवन् ! सब जीव पहिले इस रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस ई लाख नरकावास में से एक २ नरकावास में पृथ्वी कायापने यावत् नारकीपने पहिले उत्पन्न हुवे ? हां गौतम ! अनेकवार व अनंतवार उत्पन्न हुवे. ॥ ५ ॥ जैसे रत्नप्रभा के दो आलापक कहे वैसे ही शर्कर (प्रभा के २५ लाख नरकावास के दो आलापक जानना ऐसे ही वालुप्रभा के १५ लाख; पंकप्रभा के १० लाख, धूम्र प्रभा के तीन लाख, तम में पांचकम एक लाख और तमतम प्रभा के पांच अनुत्तर बहुत
* प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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