________________
१.७४८
शब्दार्थ 4 अविरक्त म० मनानुकुल स० साथ इ० इष्ट स० शब्द फ. स्पर्श जा. यावत् पं. पांच प्रकार के मा..
मनुष्य के का० काम भोग १० भोगरते वि० विचरता है ता० उम गो० गौतम पु० पुरुष वि० रतिसमय । में के कैसा सा० सातामुख प० भोगवता वि• विचरता है उ० उदार स० आयुष्यवन्त गो• गौतम पु० पुरुष का काम भोग से वा० वाणव्यंतर दे० देवका अ. अनंत गुणा वि० श्रेष्ठ का काम भोग वा.. वाणव्यंतर दे० देवके का० काम भोग से अ० असुर कुमार व० वर्जकर भ० भवनवासी द० देवका अ.
विउसमणकालसमयसि कारसयं सातसोक्खं पच्चणुध्भवमाणे विहरइ ? उरालं समणाउसो ! तस्सणं गोयमा ! पुरिसस्स कामभोगेहितो वाणमंतराणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिट्टतराचेव कामभोगा, दाणमंतराणं देवाणं कामभोगेहितो अमुरिंद वजियाणं भवणवासीणं देवाणं एत्तो अगंतगुणविसिटुतराचेव कामभोगा, असुरिंद वजियाणं भवणवासियाणं देवाणं कामभोगेहितो असुग्कुमाराणं देवाणं एत्तो
अणतगुण विसिटुतराचेव काम भोगा, असुर कुमाराणं देवाणं कामभोगेहितो भावार्थ
हर वंशवाली यावत् कलावंत, अनुरक्त, अविरक्त, व पति के मन को अनुकूल ऐनी भर्या की साथ इष्ट है शब्द यावत् स्पर्श ऐसे पांच प्रकार के मनुष्य के कामभाग भोगना हुरहे. अहो गौतम ! पुरुष वंद के विकार का जो उपशम उस काल के अंत में अर्थात् वीर्य क्षरणराते समय में वह पुरुष कैसा सुख अनुभवे ? अहो भगवन् ! वह पुरुष उदार सुख अनुभवे. तब अहो गौतम ! उस पुरुष के कामभोगों से
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी।
. प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *