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________________ शब्दार्थ विदेश जावे त० तहां से ल० अर्थ प्राप्त कर क० कार्य कर अ० विघ्न रहित णि अपना गिः गृह को ह० । yo शीघ्र आ० आया ण्डा० स्नान किया क. पलीक कीया कतिलममादि किय स० मलिंकार वि. विभू-34 षित म० मनोज्ञ था० स्थालीपाक मु० शद्ध अ. अठारह वं प्रकार का भो० भोजन भु० भोगवते ते. १७४७ उम ता० तमे वा गृह में व० वर्णन युक्त म० महावल जा० यारत्म० सयन उ. उपचार क० युक्त ता. पर तैती भा० भार्या से ति० शृंगार आ० गृह चा. मनोहर जा. यावत् क० कलावन्त अ० अनुरक्त अ० कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल पायच्छिते सव्वालंकार विभूसिए, मणुण्णं थालीपाक सिद्ध अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं भुत्तेसमाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसि वण्णओमहब्बले जाव सयणोवयारकलिए ताए तारिसयाए भारियाए सिंगारगार चारुवेसाए जाव कलियाए अणुरत्ताए अविरत्ताए भणाणुकूलाए सद्धिं इढे सद्दे फरिसे जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे यच्चणुब्भवमाणे विहरइ ॥ तासेणं गोयमा ! पुरिसे अल्प समय में विवाह करके धनप्राप्ति के लिये सोलह वर्ष पर्यंत परदेश गया. वहां पर इच्छित द्रव्य तथा 20 सामग्री प्राप्त कर पुनः अपने गृह पीछा आया. स्नान किया, चंदन भएखादिक का विपन किया, कोगले किये, तिलयसादिक किये, सर्वालंकार से विभूविन बना. और उत्ता भाजन में पाये हुवे अठारह । प्रकार के व्यंजनादि युक्त भोजन करके महाबल के भुवन गृह समान भुवन में शृंगार के गृह समान मनो- । 488 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सत्र 20880-बारहमा शतकका छ। उहशा भावार्थ .
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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