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शब्दार्थ
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राजा को क० कितनी अ० अग्रमहिषी ५० प्ररूपी ज. जैसे द० दशवे शतक में जा. यावत् णो नहीं मे• पैथुन सेवने को मू० सूर्य त. तसे ॥ ८ ॥६० चंद्र सू० सूर्य भं० भगवन् जो० ज्योतिषी रा० राजा के • कैमे का० काम भोग ५० भोगवते वि. विवाते हैं गो० गौतम ज० जैसे के० कोइ पु० पुरुष ५० प्रथम जो यौवन उ. उत्थान . बलवाला प. प्रथम जो० यौवन उ० उत्थान ब० बलवाली भा० भायो स० साथ अ० थोडा काल में वि० विवाह करके अ० अर्थ ग० गवेषणा को सो० सोलह वा० वर्ष वि०
पण्णत्ताओ ? जहा दसम सए जाव णो चेवणं मेहुणवत्तियं ॥ सूरस्स वि तहेव ॥८॥ चंदिम सूरियस्सणं भंते ! जोइसिंदा जोहासरायाणो केरिसए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ? गोयमा ! से जहाणामए का पुरिसे पढमजोव्वणट्ठाण बलत्थ पढम जोव्वणट्ठाण बलत्थाए भारियाए सद्धिं आंचरत्त विवाहक-जे अत्थगवेसणत्ताए सोलसवास विप्पवासिए सेणं तआलटे कयव ज्जे अणहसमए पुणरवि णियणं गिहं हव्वमागए, पहाए अहो भगवन् ! ज्योतिषी के इन्द्र ज्योतिषी के राजा चंद्र को कितनी अग्रमहिषियों कहीं ? अहो गौतम ! इस का सब वर्णन दशवे शतक में से जानना. यावत् सभा में मैथुन सेवो को समर्थ नहीं है वहां
तक कहना और सूर्य का भी वैसे ही जानना ॥ ८ ॥ अहो भगान् ! गोलिपी के इन्द्र, चंद्र, सूर्य, कैसे 17कामभोग भोगवते हैं ? अहो गौतम ! जैसे कोई पुरुष यौवन के उदय से प्राप्त वलवाली भार्या की साथ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*,
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भावार्थ