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________________ १७४३ शब्दार्थ प्ररूपे धु० ध्रुवराहु ५० पर्षराहु त० तहां जे० जो धु० ध्रुवराहु व० कृष्ण १० पक्ष के ५० मतिपदा ५०ी । पन्नरवा भाग से प० पन्नरचा भाग को चं चंद्रलेश्या को आ० आवरणकर चि० रहे तं• वह ज. जैसे प०प्रथमा में प-प्रथम भाग विन्दूसरा में वि० दूसरा भाग जा० यावत् प० पनरवा में प०पनरवा भाग च० चरम समय में चं० चंद्र र० आच्छादित भ० हावे अ० अवशेष प० समय चं० चंद्र र. आच्छादित वि० खुला भ० हावे ता० तैसे ही सु. शुक्लपक्ष में उ० देखाता चि० रहे प० प्रथमा में प. प्रथम भाग जा जे से धुवराहू सेणं बहुलस्स पक्खस्स पाडिवए पण्णरसति भागेणं पण्णरसभागं चंदलस्सं आवरेमाणे २ चिट्ठइ, तंजहा-पढमाए पढमं भागं, बितियाए वितियं भाग, जाव पण्णरसेसु पण्णरसमं भागं. चरमसमए चंदे रत्ते भवइ अवसेसे समए चंद रत्तेवा रहता है. अब जो ध्रुव राहू है वह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा मे पन्नरह * भाग का एक भाग ढकता हवा रहता है. प्रथम तीथि में प्रथम भाग यावत् पन्नरहवी तिथि में पन्नरहवा भाग. चरम समय में चंद्र रक्त F.रहता है और शेष समय में रक्त विरक्त दोनों रहता है, अर्थात् आच्छादित अनाच्छादित रहता है. वैसही 00 A शुक्ल पक्ष में दोखता हुवा प्रम तिथि में एक भाग यावत् पंदरवी तिथि में पन्नरहवा भाग दीखता है. चरमई * अन्य स्थान चंद्र मंडल के सोलह विभाग किये हैं और सोलहवा विभाग संदेव खुला रहता है. परंतु एक भाग का अल्पपना से यहां उस की विवक्षा नहीं करते पजरह भाग ग्रहण किये हैं. पंचमांगविवाह पण्णनि (भगवती ) सूत्र -god बारहवा शतकका छठा उद्देशा 8+
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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