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मनुष्य क्षेत्र के म० मनुष्य ३० कहते हैं रा. राहु चं. चंद्र का वं. वमन कीया ज. जर रा. राहु आ० आते जा. यावत् १० परिचाहना करते चं० चंद्र लेश्या को अ० नीचे म. चारों गजु आ० आवर्त कर चिक रहे त. तप म० मनुष्य क्षेत्र में म. मनुष्य व. कहते हैं रा० राहु से चं० चंद्र घ० ग्रस्त हुवा ॥३॥ कि० कितने प्रकार का भं० भगवन् रा० राहु १० प्ररूपा गो० गौतम दु० दो रा. राहु ५०
राह आगच्छमाणेवा ४ चंदलेस्सं आवरेत्ताणं पच्चोसक्कइ तदाणं मणुस्सलोए मणुस्सा वदति-एवं खलु राहुस्सणं चंदे वंते ॥ एवं जयाणं राहू आगच्छमाणेवा जाव परियारेमाणेवा चंदलेस्सं अहे सपक्खि सपडिदिसिं आवरेत्ताणं चिट्ठइ, तयाणं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति-एवं खलु राहुणा चंदे घत्थे, एवं २ ॥ ३ ॥ कतिविहेणं भंते !
राहू पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे राहू पण्णत्ते, तंजहा-धुवराहूय, पव्वराहूय ॥ तत्थणं लोक में मनुष्यों कहते हैं कि राहूने चंद्र का वमन किया. और जब राहू जाते आते, वैक्रेय करते व परिचारणा करते चंद्र की कान्ति को नीचे, बाजुपर व चारों दिशि में ढक कर रहता है तब मनुष्य लोक में कहा जाता है कि राहूने चंद्र ग्रहण किया ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! राहू कितने कहे हैं ? अहो गौतम ! राहून दो कहे हैं. ध्रुव राहू कि जो चंद्र की साथ सदैव रहता है और पर्व राह पूर्णिमा वगैरह पर्व तिथियों में
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49 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ