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शब्दार्थ है पी० पीला रा राहु का विमान हा० हालिद्र जैसा अ० है भु० शुक्ल रा० राहु का विमान भा० भस्म
राशि जैसा ५० रूपा||२॥ ज० जब रा राहु आ० आले ग जाते रि०विकुर्वणा करते प० परिचारणा करते " चं० चंद्र लेश्याको पु० पूर्व से आ० आवर्त कर प० पश्चिम में वी० जावे त०तब पु० पूर्व में चं चंद्र उ०
२१७३९ देखावे ५० पश्चिम में रा. राहु ज. जब रा. राहु आ० आते ग० जाते वि. विकुर्वणा करते ५० परि
पण्णत्ते ॥ अत्थि पीतए राहुविमाणे हालिद्दवण्णाभे पण्णत्ते ॥ अत्थि सुकिल्लए राहु है विमाणे भासरासिवण्णाभे पण्णत्ते ॥ २ ॥. जदाणं राहू आगच्छमाणेवा,
गच्छमाणेवा, विउव्वमाणेवा, परियारेमाणेवा, चंदलेस्सं पुरच्छिमेणं आवरेत्ताणं
पञ्चच्छिमेणं बीईवयति, तदाणं पुरच्छिमेणं चंदे उवदंसेति पञ्चच्छिमेणं राहू ॥ जदाणं वाला ४ पीत वर्णवाला और ५ शुक्ल वर्णवाला. जो कृष्ण वर्णवाला विमान है वह दीपक का काजल जैसी कान्ति वाला है. जो विमान नील वर्णवाला है वह कच्चे तुम्मे की कान्ति जैसा नीला है जो रक्त वर्ण वाला है वह मजीठ वर्ण जैसा है, जो पीला विमान वह हलदी समान है और जो विमान शुक्ल वर्णवाला है वह भस्म के ढग ममान वर्ण वाला है ॥२॥ जब राहू आता हुवा व जाता हुवा [स्वाभाविक गति ] वैय करता हवा या परिवारणा करता हवा [अस्वाभाविक गति] चंद्र की कान्ति को पूर्व में आवरणकर पश्चिम में जाता है तब चंद्रपूर्व में दीखता है और पश्चिम में राहू दीखता है और जब आते, जाते,
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <
बारहवा शतक का छठा उद्दशा