SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1762
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्र १ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + सत्तमे तणुवाए तहा सत्तमे घणवाए, घणोदही, पुढवी ॥ छठे उवासंतरे अवण्णे ॥ तणुवाए जाव छट्ठी पुढवी एयाइं अट्टफासाइं जहा सत्तमाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया तहा जाव पढमाए पुढवीए भाणियव्वं ॥ १२ ॥ जंबूद्दीवे दीवे जाव सयंभुरमणे समुद्दे सोहम्मे कप्पे जाव ईसिम्पन्भारा पुढवी, णेरइयावासा जाव वेमाणियावासा एयाणि सव्वाणि अट्ठफासाणि ॥ १३ ॥ णेरइयाणं भंते ! कइवण्णा जाव कइफासा पण्णत्ता ? गोयमा ! वेउवियतेयाई पडुच्च पंचवण्णा दुगंधा पंचरसा अट्टफासा पण्णत्ता, कम्मगं पडुच्च पंचवण्णा दुगंधा पंचरसा चउफासा पण्णत्ता, घनवात का कहना व घनोदधि का व मातवी पृथ्वी का जाननग. छटा आकाशांतर में वर्णादि नहीं हैं. और छठा तनुवात, घनवात, घनोदधि व पृथ्वी में पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श ऐसे वीस बोल कहे हैं इम तरह जैसे मातवी नरक का कहा वैसे पहिली नरक तक जानना ॥ १२ ॥ जम्बूद्वीप यावत् स्वयंभूरमण, समुद्र, सौधर्म देवलोक यावत् ईषत्याग्भार पृथ्वी, नरकावास यावत् वैमानिक आवास इन सब में आठ स्पर्श जानना ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! नारकी को कितने वर्णादि कहे हैं ? अहो गौतम ! वैक्रेय तेजम् आश्री पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस व आठ स्पर्श कहे हैं और कार्माण आश्री पांच वर्ण, दो गंध, पांच. रस व प्रकाशक-राजाबहादर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy