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पंचमांग विवाह पण्णचि ( भगवती ) मूत्र 488
भावार्थ
एसणं कइवण्णा ४ पण्णत्ता? तंचव जाव अफासा पण्णता ॥ ८॥ अह भंते! उग्गहे ईहा अवाए धारणा एसणं कइवण्णा ४ पण्णत्ता? एवंचेव जाव अफासा पण्णत्ता ॥ ९ ॥ अह भंते ! उटाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार परकम्मे एसणं कइवणे ४ पण्णत्ते? तंचेव जाव अफासे पण्णत्ते ॥१०॥ सत्तमेणं भंते! उवा संतरे कइवण्णे ४ पण्णत्ते ? तंचव जाव अफासे पण्णत्ते ॥ ११ ॥ सत्तमेणं भत्ते
तणुवाए कइवण्णे ४ ५०? जहा पाणाइवाए णवरं जाव अटफासे पण्णत्ते ॥ एवं जहा रस, स्पर्श उन में नहीं हैं ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! उत्पाति वैनयिकी, कामिकी व परिणामिकी इन में कितने वर्ण, गंध रस व स्पर्श पाते हैं ? अहो गौतम ! इन में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श नहीं पाते हैं क्यों की वे ही जीव परिणाम है. ॥ ८ ॥ अहो भावन् ! अवग्रः ईहा. अपाय व धारणा इन में कितने वर्ण, गंध, रम व स्पर्श कहे हैं ? अहो गौतम ! इ7 में वर्ण गंधादि नहीं कहे हैं ॥९॥ अहो. गान् ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषात्कारपर क्रम में कितो वर्णादि कहे हैं ? अहो गौतम ! इ में वर्ण गंधादि नहीं कहे हैं ॥१०॥
अहो भगान् ! सातवी नरक नीचे मात्वा आकाश अंतर में कितने वर्ण गंधादि कहे हैं ? अहो गौतम !! ७ वर्ण गंधादि नही हैं ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! सातवा तात में कितने वर्णादि कहे हैं ? अहो
गौतम ! पांच वर्ण, दोगंव, पांच रस व आठ स्पर्श कहे हैं. जैसे सातवा तनुगत का कहा वैसे सातवा
बारहवा शतक का पांववा उद्देशा
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