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________________ शब्दार्थ) 3. {उदित होता नू॰ सूर्य च चक्षु फा० स्पर्श को ह० शीघ्र आ० आता है अ० अस्त होता जा यात्रन ह० शीघ्र आ० आता है ॥ १ ॥ जा० जितना मं० भगवन् खे० क्षेत्र को उ० उदित होता सू० सूर्य आ० तेजसे स० सब बाज ओ० प्रकाशे उ० उद्योत करे त० तपे प० प्रभासे अ० अस्त होता aro उतना खे० क्षेत्र को आ० आताप से स० सब बाजु ओ० प्रकाशे उ० उद्योत करे त० तपे प० प्रभासे जावइयाउण उवसंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हृव्वमागच्छइ, अत्थमंतेवि जाव हव्वमागच्छ ॥ १ ॥ जावइयाणं भंते ! खेत्तं उदयंतेसूरिए आयवेणं सव्व ओसमंता ओहासेइ, उज्जोएइ, तवेइ, पभासेइ, अत्थमंतेत्रियणं सूरिए तावइयंचेव खेतं आयवेणं सव्वओसमंता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ ? हंता गोयमा ! १४७२६३ योजन और एक योजन के एकसठिये इक्कीस भाग दूर से दृष्टि में आता है, वैसे उतने ही दूर से अस्त होता हुवा सूर्य दीखता है || २ || अहो भगवन् ! प्राच्यादि छ दिशि व ईशानादि चार विदिशि इन दशों दिशिओं में उदित होता हुवा सूर्य अपने तेजसे जितने क्षेत्र में प्रकाशता है, विशेष प्रकाशता है, तपता है, और जाज्वल्यमान होता है वैसे ही क्या अस्त होता हुवा सूर्य उतने ही क्षेत्र में प्रकाशता है, विशेष { प्रकाशता है, तपता है, या जाज्वल्यमान होता है ? हां गौतम ! जितने क्षेत्र में सूर्यका उदय होता, प्रकाशता यावत् जाज्वल्यमान होता है उतने ही क्षेत्र में अस्त होता है, प्रकाशता है यावत् जाज्वल्यमान होता है. सूत्र भावार्थ 43 अनुवादक बालब्रह्मचारिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * १४६
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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