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पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूद्र
वा वाणव्यंतर ओ० ज्योतिपी वैमानिक जाजम भा भवन पति नः विशेष ना. नाना प्रकार भाः ना जं. जो ज. जिसका जा. यावत् अ. अनुत्तर से वह ए. ऐसे भं० भगवन ॥ ॥ ५ ॥
जा जितना भं• भगवन् ?. आकाश का अं० अंतर से उ० उदित होता मू. सूर्य च० चक्षुस्पर्श को ह. शीघ्र आ. आता है अ. अस्त होता मू. मूर्य ता० उतना उ० आकाश का अंतर से च० चक्ष स्पर्श को ह. शीघ्र आ. आता हे है. हां गो. गौतम जा. जितना उ. आकाश के अंतर मे उ०
भाणियव्यं जं जस्स, जाव अणुत्तरा सेवंभते भंतेत्ति पढमे सए पंचमो उद्देसो । सम्मत्तो ॥ १ ॥५॥ जावइयाउणं भंते ! उवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हवमागच्छइ, अत्थमं
तेवियणं सरिए तावतियाओ चेव उवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ ? गोयमा! । अनुत्तर विमानतक कहना, श्री गौतम स्वामी कहते हैं कि अहो भगवन : जो आपने कहा है वह सब सत्य है. यह पहिला शतकका पांचवा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १॥५॥ है पांचवे उद्देशे के अंत में ज्योतिषी के विमान कहे. अब आगे उन की गति वगैरह का अधिकार कहते हैं.
अहो भगवन ! आकाश के अंतर में जितने दूर से उदित होता हुवा सूर्य दृष्टि में आता है, उतने ही दूर से *क्या अस्त होता हुवा सूर्य दृष्टि में आता है? हां गौतम ! मर्व आभ्यंतर मंडल में उदित होता हुवा सूर्य
पहिला शतकका छठा उद्देशा 88
भावार्थ