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शब्दाथ
१४.
सूत्र
भावार्थ
4. अनुवादक-बालब्रह्माचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजीक
॥ २० ॥ म. मनुष्य जे० जिस स्थान में ने नारकी को अ० अस्ती भांगा ते उस स्थान में म. मनुष्य को अ. अस्सी भांगा भा० कहना जे. जिम में स. सत्तावीस ते. उस में अ. अभंगक न. विशेष म. मनुष्य अ. अधिक ज. जघन्य ठि० स्थिति में आ. आहारक में अ० अस्मी भर भांगा ॥२१ ॥
नेरइयाणं असीइ भंगा तेहिंटाणेहि मणुस्सावि असीइभंगा भाणियब्वा । जेसु सत्तावीसा तेस् अभंगयं. णवरं मणस्साणं अब्भहियं जहणियट्रिईए आहारएय असीइ
भंगा ॥ २१ ॥ वाणमंतर जोइस वेमागिया जहा भवणवासी । णवरं नाणतं वैसे ही तिर्यंच पंचेन्द्रिय का जानना. नरक में जहां सत्तावीन भांगे लिये हैं वहांपर नियंच पंचेन्द्रिय में अभंग जानना. और अम्मी भांगे के स्थान अम्दी ही लेना ॥..नारकी में जिम स्थान अस्सी भांगे कहे हैं वहांपर मनुष्य में भी अस्मी भांगे जानना. और जहां मनावीस भांगे हैं वहांपर मनुष्य में अभंग जानना मात्र मनुष्य की जयन्य स्थिति में अम्मी भांगे जानना और आहारक शरीर में भी अस्सी भांगे हात है. नरक में आहारक शरीर नहीं होने से मनुष्य में इतना अधिक है ॥१॥ वाणव्यंतर. ज्योतिषी और वैमानिक इन तीनोंका अधिकार भुवनपति जैन करना. जहां २ भुवनपति में अस्वी चमरस भांग कहे हैं वहां इन तीनों में अस्मी व सत्तावीस भांग जानना मब से पहिले लोभवाले बहुत कर... ज्योतिषी में पाप तेजोलेश्या पीर वैमानिक में पथक लेख्याभी कही है वैसे ही यहां
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी चालाप्रसादजी*