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भावार्थ
28 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
• अवकासे, उण्णए उण्णामे दुण्णामे एसणं कइवण्णे ४ पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचवण्णे
जहा कोहे तहेव ॥ ३ ॥ अह भंते ! माया, उवही, नियडी, वलए, गहणे, णूमे, कक्के, कुरुए, झिम्मे, किव्विसे, आयरणया, गृहणया, वंचणया, पलिउंचणया, सातिजोगेय, एसणं कइवण्णे ४ पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचवण्णे जहेव कोहे ॥ ४ ॥ जैसा करडा रहना ५ गई [ अन्य से कीर्ति कराना ] ६ अनुक्रोश (अन्य को हलका करना) ७ परपरिवाद अन्य की निन्दा करना ८ उत्कर्ष अपनी श्रेष्ठता क्तलाना ९ अपकर्ष अपनी लघता छिपाना १० उन्नत [नमना नहीं] ११ उन्नाय जो आकर नम्मा होले उमए गर्व करे] १.२ दन्नाम (दुष्टपने नये) (ये मानके बारह पर्याय वाची नाम कहे हैं.) उन में कितने वर्ण यावत् स्पर्श कहे हैं. ? अहो गौतम ! पांच वर्ण यावत् चार स्पर्श यो १६ बोल क्रोध जैसे कहना. ॥ ३ ॥ १ .माया २ उपाधि [ समीप जाकर ठगना ] ३. नियडी
कार्यकर छिपाना] ४ वलय (वक्र रहना) ५ गहन (छिपी हुई) ६ णूम गुप्ताश्रयी] ७ कर्कश (कठोर रहना १८ करात [ कुचेष्टा ] करना २ झिम (अन्य को ठगना) १० किल्विष ( मायावी किल्विष में उत्पन्न होवे ) १११ आदरणता, १२ गुह्य १३ वंचन १४ प्रतिकुंचन [सरल वचन का खंडन करना ] १५ शाति योग । (विश्वास रहित) यह माया के १५ पर्याय वाची नाम कहे हैं. अहो भगवन् इन पंदरह में कितने वर्ण* गंध रस व स्पर्श पावे ? अहो गौतम ! क्रोध की तरह १६ बोल पाते हैं. ॥ ४॥ लोभ इच्छा, मूर्चा, ।
___-380*बारहवा शतकका पांचवा उद्देशा ४.४