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शब्दार्थ
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१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी माने श्रा अमोलक ऋषिजी
कौनसा रम का कौनसा स्पर्श प. प्ररूपा गो० गौतम पं० पांच वर्ण दुः दोगंध पं० पांचरस च. चार * स्पर्श १० प्ररूपा ॥१॥ अ. अथ भं• भगवन् को क्रोध को कोप रो० रोष दो० द्वेष अ० अक्षमा संक संज्वलन क० कलह चं० रौद्रहोना भ० भांडना वि. विवाद करना ए० इन का क० कौनसा वर्ण जा. यावत् क०कौनसा स्पर्श गोगौतम पं० पांचवर्ण पं०पांचरस दुःदोगंध च चार स्पर्श प०प्ररूपा सरल शब्दार्थ
परिग्गहे, एसणं कइवण्णे,कइगंधे, कइरमे, कइफासे, पण्णत्ते? गोयमा! पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे चउफासे पण्णत्ते ॥१॥अह भंत कोहे, कोवे,रोसे,दोसे, अक्खमा, संजलणे, कलहे, चंडिक्के,भंडणे,विवादे,एसणं कइवण्ण जाव कइफासे प०?गोयमा! पंचवण्णे,पंचरसे दुगंधे,
चउफासे पण्णत्ते ॥२॥अह भंते ! माणे,मदे,दप्पे,थंभे,गव्वे, अणुक्कोसे परपरिवाए; उक्कोसे, स्वामी को वंदना नमस्कार कर श्री गौतम स्वामी पूछनेलगे कि अहो भगवन् प्राणातिपात, मृपावाद, अदत्तादान,, मैथुन व परिग्रह इन पांच पापस्थान में कितने वर्ण, गंध, रस व स्पर्श पाते हैं ? अहो गौतम ये पापस्थान पुद्गल रूप होने से पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस व चार स्पर्श यो १६ बोल पाते हैं ॥१॥ अहो भगवन् ! क्रोध, कोप, रोष, द्वेष, अक्षमा, संचलन, कलह, पांडालपना, भंडन और विवाद इन में कितने वर्ण, गंध, रस व स्पर्श कहे हैं ? अहो गौतम ! पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस चार स्पर्श कहे हुवे हैं ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! मान । अहंकार रखना ) मद (नशो ज्यों छके) दर्प (डरता रहे,) ४ स्थंभ (स्थंभ।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ