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________________ शब्दार्थ १७२७ 488 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात ( भगवती ) सूत्र 488 रा० राजगृह में जा० यावत् ए० ऐसा व० बोले अ० अथ भं० भगवन् पा. प्राणातिपात मु० मृषा . | वाद अ० अदत्तादान मे० मैथुन प० परीग्रह ए. इन का क० कौनसा व वर्ण क● कौनसा गंध क.2 परियटा अणंतगुणा, जाव आणापाणुपोग्गल परियट्टा अणंतगुणा ; ओरालिय पोग्गल परियट्टा अणंतगुणा, तेयापोग्गल परियटा कम्मापोग्गल परियटा अणंतगुणा ॥ २५ ॥ ___ सेवं भंते भंते त्ति ! भगवं जाव विहरइ ॥ दुवालसम सयस्सय चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १२ ॥ ४ ॥ * रायगिहे जाव एवं वयासी-अह भंते पाणाइवाए, मुसावाए, अदिण्णादाणे, मेहुणे, परावर्त इससे वचन पुद्गल परावर्त अनंतगना इनसे मनपुद्गल परावर्त अनंतगुना इससे श्वासोश्वास पुद्गल परावर्त अनंतगुना इमसे उदारिक पुद्गल परावर्त अनंत गुना,इससे तेजस पुद्गल परावर्त अनंत गुना,इससे कार्माण पुद्गक परावर्त अनि गुना ॥ २५ ॥ अहो भगवन् ! आप के वचन सस हैं कहकर भगवान् गौतम स्वामी श्रमण भगवंत महावार स्वामी को वंदना नमस्कारकर तप संयम से आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे. यह बारहवा शतक का चौथा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १२ ॥ ४॥ चतुर्थ उद्देशे में पुद्गल का कथन किया. पुद्गल रूपी अरूपी दोनों होते हैं इसलिये पांचवे उद्देशे में रूपी अरूपी दोनों का कथन करते हैं. राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर । 4860 बारहवा शतकका चाथा उद्देशा 987
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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