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१०१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अगंता भागियवा; जस्स नत्थि तस्स दोवि णत्यि भाणियव्वा, जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते। केवइया आणापाणु पोग्गल परियट्टा अतीता?अणंता । केवइया पुरक्खडा? अणता ॥२१॥ से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ ओरालिय पोग्गल परिय? ? ओरालिय पोग्गल परिय? गोयमा!जणं जीवेणं ओरालियसरीरे वट्टमाणेणं ओरालिय सरीरपाउग्गाई दव्वाइं ओरालिय सरीरत्ताए गहियाइं बहाई पुट्ठाई कडाइं पट्टवियाई, निविट्ठाई, अभिणिविट्ठाई, अभिसमण्णागयाइं परियागयाइं परिणामियाई, णिजिण्णाई णिसिरियाई णिसिट्ठाइं भवंति, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ ओरालिय पोग्गलपरिय? पृथ्वी कायापने बहुत नारकीने अतीत काल में अनंत उदारिक पुद्गल परावर्त किये और आगामीक कालमें करेंगे ऐसे ही मनुष्य तक जानना. वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का नारकी जैसे कहना. ऐम ही सातों पुल परावर्त जानना. उन में जिनको जो है उनको अतीत व अनागत काल में अनंत पुद्गल परावर्त कहना. ॥ २१ ॥ अहो भगवन् ! उदारिक पुद्गल परावर्त किस तरह कहा गया है ? अहो गौतम ! उदारिक शरीर में रहा हुवा जीवने उदारिक शरीर के योग्य द्रव्य उदारिक शरीरपने ग्रहण किये, बांधे, स्पर्श, किये, रखे, मीलाये, परिणमाये, निर्जराये, व छोडे इस से उदारिक पुद्गल परावर्त कहा गया. ऐसे ही
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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