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यत्ते, एवं जाव थणियकुमारस्स, एवं पुढविकाइयस्सवि, एवं जाव वेमाणियस्स सब्गेर्सि एक्को गमओ ॥ १८ ॥ एगमेगस्सणं भंते ! णरइयस्स गेरइयत्ते केवइया वेउब्बियपोग्गल परियट्टा अतीता ? अणंता. केवइया पुरक्खडा ? एगुत्तरिया जाव अणंतावा, एवं जाव थाणियकुमारत्ते. पुढवीकाइयत्ते पुच्छा, णत्थि एक्कोवि केवइया पुरक्खडा ? णत्थि एक्कोवि. एवं जत्थ वेउब्विय सरीरं अस्थि तत्थ एगुत्तरियाओ, जत्थ णत्थि तत्थ जहा पुढविकाइयत्ते तहा भाणियव्वं जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते
॥ १९ ॥ तेयापोग्गल परियटा कम्मापोग्गल परियहा सव्वत्थ एगुत्तरिया भाणियव्वा॥ भावार्थ भवनपति पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक का
जानना ॥ १८ ॥ अहो भगवन् ! एक नारकीने नारकीपने अतीत काल में कितने क्रेय पुद्गल परावर्त किये ? अहो गौतम ! अनंत पगल परावर्त किये और आगामिक काल में कितनेक करेंगे, कितनेक नहीं की
करेंग. जो करेंगे वे एक दो तीन यावत् संख्यात, असंख्यात व अनंत करेंगे ऐसे ही स्थनित कुमारतक में है कहना. पृथ्वीकाया में वैक्रेय शरीर नहीं होने से वैक्रेय पुद्गल परावर्त नहीं है अब जिस को वैक्रेय । शरीर है उस को नारकी जैसे कहना और जिन को वैक्रेय शरीर नहीं है उन को पृथ्वीकाया जैसे
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी -
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी,