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असंखेजावा अणंतावा ॥ एगमेगस्सणं भंते! असुरकुमारस्स केवइया ओरालिय पोग्गलपरियट्टा एवं चेव, एवं जाव वेमाणियस्स ॥ एगमेगस्सणं भंते! णेरइयस्स केवइया वेउव्विय पोग्गलपरियट्टा अतीता? गोयमा! अणंता एवं जहेव ओरालिय पोग्गलपरियटा तहेव बेउन्विय पोग्गलपरियहा भाणियध्वा, एवं जाव वेमाणियस्स ॥ एवं जाव आणाषाणु पोग्गलपरियटा, एए एगइया सत्तदंडगा भवंति ॥ २५॥
णेरइयाणं भंते! केवइया ओरालिय पोग्गलपरियहा अतीता? गोयमा! अणंता। भावार्थ
अथवा अभव्य जीवहैं उनको पुद्गल परावर्त है और जो नरक से नीकलकर मुक्त सिद्ध होवेंगे अथवा जो संख्यात असं ख्यात भव में सीझनेवाले होंगे उनको पुद्गल परावर्त नहीं है क्योंकि पुद्गल परावर्त में अनंत भव होते हैं. जिस को पुद्गल परावर्त होता है उस को जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात असंख्यात व अनंत पुद्गल परावर्त होते हैं. अहो भगवन् ! एक २ असुर कुमार को कितने पुद्गल परावर्त कहे हैं ? अहो गौतम ! जैसे नारकी का कहा वैसे ही अमर कुमारका जानना. और ऐसे ही वैमानिकतक जानना. अहो भगवन् ! एक २०० नारकी का कितने वक्रेय पुद्गल परावर्त अतीत काल में हुए ? अहो गौतम ! अनंत पुद्गल परावर्त हुए.
वगैरह जैसे उदारिक का कहा वैसे ही वैकेय का जानना. ऐसे ही श्वासोश्वास तक सातों पुद्गल परावर्त ॐका चौविस दंडक आश्री जानना ॥ १५ ॥ अहो भगवन् : समस्त नारकीने अतीत काल में कितने
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
___4343 बारहवा शतकका चौथा उद्देशा ghota