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ऋषिजी +
पोग्गलपरियटे, तेया पोग्गलपरियटे, कम्मापोग्गलपरियट्टे, मण पोग्गलपरिय? वइ पोग्ग र परियट्टे, आणापाणु पोग्गल' रियट्टे ॥ १३ ॥ जेरइयाणं भंते ! कइविहे पोग्गलपरिय? पण्णत्ते ? गोयमा! सत्तविहे पोग्गलपरिय? पण्णत्ते तंजहा ओरालिय पोग्गलपरियट्टे, वेउब्धिय पोग्गलपरियटे जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टे, ॥ एवं जाव वेमाणियाणं ॥ १४ ॥ एगमेगस्सणं भंते ! णेरइयस्स केवइया ओरालिय पोग्गलपरियट्टा अतीता? गोयमा! अणंता, केवइया पुरक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि
कस्सइ नत्थि, जस्स अत्थि जहण्णेणं एक्कोवा दोवा तिणिवा उक्कोसेणं संखजावा पुद्गल परावर्त, कार्माण पुद्गल परावर्त, मन पुद्गल परावर्त, वचन पुद्गल परावर्त व श्वासोश्वास पुद्गल परावर्त ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! नारकी को कितने पुद्गल परावर्त कहे हैं ? अहो गौतम ! नारकी को मात पुद्गल परावर्त कहे हैं ऐसे ही उक्त सातों पुद्गल परावर्त वैमानिक तक जानना. ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! एक २ नारकी को कितने उदारिक पुद्गल परावर्त अतीत काल में हुए ? अहो गौतम ! अतीत काल में एक २ नारकी को उदारिक के अनंत पुल परावर्त हए क्यों कि अतीत काल व जीव दोनों अनादि हैं. अहो भगवन् ! एक नारकी आगे कितने उदारिक पुद्गल परावर्त करेंगे ? अहो गौतम ! जो दूर भव्य
48 अनुवादक-बालब्रह्मगरी मुनि श्री अमोलक
भावार्थ
* प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *