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१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
असंखेज पएसिए खंधे भवइ, अहवा संखेजा असंखेज पएसिया खंधा भवंति, असंखेजहा कजमाणे असंखेज्जा परमाणुपोग्गला भवंति ॥ १० ॥ अणताणं भंते ! परमाणुपोग्गला जाव किं भवंति ? गोयमा ! अणंतपएसिए खंधे भवइ, से भिजमाणे दुहावि तिहावि जाब दसहावि संखेजहा असंखेजहा अणंतहानि कज्जइ, दुहा कन्जमाणे एगयओ परमाणुगोग्गले एगयओ अणंतपदेसिए खंधे भवइ, एवं जाव अहवा दो अणंतपदेसिया खंधा भवंति, । तिहाकजमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ अणंतपदेसिए खंधे भवइ, अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ दुपदेसिए एगयओ
अणंतपदेसिए खंधे भवइ, जाव अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ असंखेज्ज त्मक स्कंध एक असंख्यात प्रदेशात्मक स्कंध, संख्यात संख्यात प्रदेशात्मक स्कंध एक असंख्यात प्रदेशास्मक स्कंध अथवा संख्यात असंख्यात प्रदेशात्मक स्कंध. असंख्यात टुकडे करने में असंख्यात परमाणु पुद्गल होते हैं ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! अनंत परमाणु पुद्गल एकत्रित होने से क्या होता है ? अहो । गौतम ! अनंत परमाणु पुद्गल मीलने से अनंत प्रदेशात्मक स्कंध होता है. उस के विभाग करने से दो तीन यावत् दश संख्यात असंख्यात व अनंत विभाग होते हैं. दो विभाग करने से एक परमाणु पुद्गल -
- प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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