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________________ 2. १६११ पण्णति (भगवती) सूत्र 48 साहणित्ता किं भवइ ? गोथमा! दुपदेसिए खंधे भवइ, से भिजमाणे दुहा कजइ, एगयओ परमाणु पोग्गले, एगयओ परमाणुपोग्गले भवइ ॥ १ ॥ तिण्णि भंते ! परमाणु पोग्गला एगयओ साहणित्तए किं भवइ ? गोयमा ! तिपदेसिए खंधे भवइ से भिजमाणे दुहावि तिहावि कज्जइ, दुहा कज्जमाणा एगयओ परमाणुपोग्गले गय: ओ दुपदेसिए खंधे भवइ, तिहा कज्जमाणे तिण्णि परमाणुः पोग्गला भवंति ॥ २ ॥ चत्तारि भंते ! परमाणु पोग्गला पुच्छा ? गोयमा! चउपदेसिए खंधे भवइ, से भिजमाणे दुहावि, तिहावि, चउहावि कजइ, दुहाकज्जमाणे एगयओ परमाणु पोग्गले, कर प्रश्न किया कि अहो भगवन् ! दो पुद्गल एकत्रित होते हैं और इस तरह एकत्रित बनकर क्या होता है ? अहो गौतम ! दो प्रदेश एकत्रित होने से द्विपदेशात्मक स्कंध होता है और जब उस का दो विभाग करते हैं तब एकर परमाणु पुद्गल ऐसे दोविभाग होते हैं. इस तरह द्विप्रदेशात्मक स्कंधका एक मांगा होता है ॥१॥ अहो भगवन् ! तीन पुद्गल एकत्रित होकर क्या होता है ? अहो गौतम ! तीन प्रदेशात्मक स्कंध होता है. उस के विभाग करते दो व तीन-विभाग होते हैं जब दो विभाग होते हैं तब एक द्विप्रदेशात्मक स्कंध ? व एक परमाणु पुल और तीन विभाग में एक २ परमाणु पदलों के तीन विभाग होते हैं ॥ २ ॥ अहो बारहवा शतक का चौथा उद्देशा भावार्थ Jyes ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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