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________________ शब्दार्थ सूत्र मात्रार्थ ८० अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + (घम्मा ना० नाथ र० रत्नप्रभा गो० गोत्र ए० ऐसे जः जैसे औ० जीवाभिगम में प० प्रथम ०नारकी उ० उद्देशा सो० वह णि० निर्विशेष भा० कहना जा० यावत् अ० अल्पाबद्दुत्व ॥ १२ ॥ ३ ॥ एवं जहा जीवाभिगमे पढ़मो णेरइय उद्देसओ खो णिरवसेसो भाणियव्वो जाव अप्पाबहुगन्ति ॥ २॥ सेवं भंते भंतेत्ति || दुवालसम सयस्स तइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥१२॥३॥ रायग जाव एवं वयासी दो भंते! परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति एगयओ { नाम व शर्कर प्रभा गोत्र ३ तीसरी का सीला नाम व बालुप्रभा गोत्र ४ चौथी का अंजना नाम व पंकमा गोत्र ५ पांचवी का रिठा नाम व धूम्रप्रभा गोत्र ६ छठ्ठीका मघा नाम व तमप्रभा गोत्र और ७ सातवी का माघवती नाम व तमतमा गोत्र वगैरह सब कथन जीवाभिगम सूत्र के प्रथम नरक उद्देशे में जितना कहा वह सब जानना. यावत् सब से थोडे सातवी नरक के नेरिये उस से छठी नरक के नेरिये असंख्यातगुने, उस से पाचवी नरक के नेरिये असंख्यातगुने यो क्रम से पहिली नरक के नेरिये असंख्यातगुने अहो भगवन | आप के वचन सत्य हैं यह बारहवा शतक का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा || १२ || ३॥ * तीसरे उद्देशे में पृथ्वी का कथन किया. वह पुद्गलात्मक होने से आगे पुद्गल का अधिकार कहते हैं. (राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे परिषदा वांदने को आइ, धर्मो पदेश सुनकर पीछीगई. उस समय में श्री गौतम स्वामीने भगवान् श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी १६९०
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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