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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र ०१
रा० राजगृह
में जा० यावत् ए ऐसा वर बोले क० कितनी मं० भगवन् पुः पृथ्वी प० प्ररूपी मो० गौतम स० सात पु० पृथ्वी १० प्ररूपी तं वह ज० जैने प० प्रथमा दो० दुसरी जा० यावत् स० सातवी ॥ १ ॥ प० प्रथमा भ० भगवन् पु० पृथ्वी कि ना० नाम गो० गोत्र ५० प्ररूपा गो० गौतम घ०
हीणा ॥ सेवं भंते भंतेति ॥ दुवालसम स्यस्वयवितीओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ १२ ॥२॥ रायगिहे जाव एवं वयासी कइणं भंते! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? पुढबीओ पण्णत्ताओं तंजहा - पढमा दोवा जाव सत्तमा ॥ १ ॥ पुढवी किं नामा किं गोत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! घम्मा णामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं,
गोयमा ! सत्त पढमाणं भंते !
देवानंदा जैसे कहना यावत् प्रवजित हुई और सब दुःखों से रहित हुई. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह बारहवा शतक का दूसरा उद्देशा पूर्ण हवा ॥ १२ ॥ २ ॥
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दूसरे उद्देशे के अंत में कर्मबंध कहा. बहुल कर्मी जीव नरक में जाते हैं इस से तीसरे उद्देशे में नरक का प्रश्न करते हैं. राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! पृथ्वी कितनी कही हैं ? अहो गौतम ! पृथ्वी । सात कही पहिली, दूसरी यावत् सातवी || १ || अहो भगवन् ! पहिली पृथ्वी का क्या नाम व गौत्र कहा है ? अहो गौतम ! १ पहिली पृथ्वी का धम्मा नाम कहा है और रत्नप्रभा गोत्र कहा है २ दूसरी का वंश
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१०- ६० बारहवा शतक का तीसरा उद्देशा 80-42504
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