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पंचमा विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र tagran
संजोएत्तारो भवति ॥ एएसिणं जीवाणं बलियत्तं साहू ॥ से तेणटेणं जयंती ! एवं वुच्चइ तंचेव जाव साहू ॥ १७ ॥ दक्खत्तं भंते! साह आलसियत्तं साहू ? जयंती! अत्थेगइयाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू अत्थेगइयाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू ।। से कणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ तंचव जाव साहू ? जयंती ! जइमे जीवा अहम्मिया जाव विहरंति, एएसिणं जीवाणं आलसियत्तं साहू, एएसिणं जीवा अलसाउमाणा
णो बहूणं जहा सुत्ता तहा अलसा भाणियव्या, जहा जागरा तहा दक्खा भाणियव्वा मावत् परितापना उत्पन्न नहीं कर सकते हैं और स्वतः को, अन्य को व उभय को अधर्म में नहीं जोड सकते हैं. वगैरह सब सुप्त जीवों जैसे कहना. और बलवन्त को जाग्रत रहते जीवों जैसे कहना.अहो जयंती ! उक्त कारनों से कितनेक जीवों बलवन्त अच्छे हैं और कितनेक जीवों जागृत अच्छे हैं ॥ १७ ॥ अहो भगवन ! उद्यम अच्छा या आलस्य अच्छा? अहो जयंती! कितनेक जीवों को उद्यम अच्छा है और कितनेक जीवों को आलस्य अच्छा है. अहो भगवन् ! यह किस तरह ? अहो जयंती ! जो जीव अधर्मी, अधर्मानुरागी यावन् विचरते हैं उन जीवों को आलस्य अच्छा है, क्यों कि वे सुप्त जीवों समान प्राणियों को दुःख वगैरह नहीं दे सकते हैं और स्वतः को, अन्य को व उभय को अधर्म से नहीं जोड-हैसकते हैं. और जो धर्मी होते हैं उनको उद्यम अच्छा है क्योंकि वे प्राणियों को मुख वगैरह उत्पन्न करते हैं।
+ बारहवा शतकका दूमा उद्देशाने
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