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+ अनुवादक-रालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक सपिजी ..
धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरइत्तासे भवंति ॥ एएसिणं जीवाणं जागरियत्तं साहू से तेण?णं जयंती! एवं वुच्चइ अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, अत्थेगइयाणं .. जीवाणं जागरियत्तं साहू ॥ १६ ॥ बलियत्तं भंते ! साहू दुब्बलियत्तं साहू ? जयंती अत्थेगइयाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू ॥ से कॅणतुणं भंते! एवं वुच्चइ जाव साह ? जयंती! जे इमे जीवा अहम्मिया जाव विहरंति एएसिणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू,एएणं जीवा एवं जहा सुत्तस्स तहा दुब्ब• लियत्तस्स वत्तबया भाणियव्वा ॥ बलियस्स जहा जागरस्स तहा भाणियव्वं जाव आत्मा को अधर्म से सयोजना करते हैं और जो जीव धर्मी, धर्मानुरागवाले, यावत् धर्म से आजीविका करनेवाले होते हैं वे जागते हुवे अच्छे हैं. वे जागते हुवे प्राणियों को अदुःख यावत् अपरितापना करते हैं और स्वतः को, अन्य को व उभय को अनेक धार्मिक संयोगो से जोडनेवाले होते हैं. वे जीवों जागते. हुवे धर्म जागरणा जागते हैं। इस से इन जीवों का जागना अच्छा है ॥१६॥ अहो भगवन् क्या बलवान् ! अच्छ या दुर्बल अच्छे ? अहो जयंती ! कितनेक जीवों बलवन्त अच्छे व कितनेक जीवों निर्बल अच्छे. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है ? अहो जयंती ! जो जीवों अधर्मी, अधर्मानुरागी यावत् पूर्वोक्त प्रकार से जो अधर्मी जीवों हैं वे दुर्बल अच्छे हैं क्यों कि वे दुर्बल होने से प्राणों को दुःख
प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*