SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1715
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - पाणभूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जाय परिथावणयाए वहति ॥ एएणं जीवा सुत्ता समाणा अप्पाणंवा परंवा तदुभयंचा णो बहहिं अहम्मियाहिं संजोयणहिं संजोएत्तारो भवंति ॥ एएणं जीवाणं सत्तत्तं साहू ॥ जयंती !जे इमे १६८५ जीवा धम्मत्थिया धम्माणुगा जाव धम्मेणंचव बित्ति कप्पेमाणा बिहरंति, एएसिणं जीवाणं जागरियत्तं साहू ॥ एएणं जीवा जागरमाणा बहणं पाणाणं अदुक्खणयाए जाव अपरियावणयाए वहति ॥ तेणं जीवा जागरासमाणा अप्पाणंवा परंवा तदुभयं. या वहूहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो सर्वति ॥ एएणं जीवा जागरमाणा भावार्थअच्छा या जागत रहना अच्छा ? अहो जयंती ! कितनेक जीवों का सोना अच्छा है और कितनक जीवों का जागृत रहना अच्छा है. अहो भगवन् ! किस कारन से कितनेक जीवों का सोना अच्छा और फितरेक जीवों का जागना अच्छा कहा ? अहो जयंती! जो जीव अधर्मी हैं, अधर्म में अनुरक्त है, अधर्म इष्टकारी हैं, अधर्म अवतारपाले , अधर्म को ही आचरने रूप देखते हैं, अधर्म का उपदेश करते ७ | हैं. अभियों का समुदाय है और अब वृति से ही आजीविका करते हैं ऐसे जीवों सोत हुवे अच्छे हैं क्योंकि 1 प्रणियों को दुःख शोक यावत् परितापना उत्पन्न नहीं कर सकते हैं. अपने, अन्य के व उभ्य के 48 पंचमांग विवाह १ष्णत्ति (भगवतीत्र Food बारहवा शतक का दूसरा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy