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एक-चाल ब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिनी
सिया से तेणटेणे. जयंती! एवं बुच्चइ सत्येविण जाव भविस्सइ ॥ १५॥ सुत्तत्तं भंते! साहू, जागरियन्तं साहू ? जयती : अस्थगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू अत्यंगइयाणं जीवाणं जांगरियत्तं साहू !! से केण्टेणं भंते! एवं वुच्चइ अत्थेगइयाणं जाव साहू ? जयंती! जे इमे जीवा अहम्मिया, अहम्माणुया, अहम्मिट्ठा, अहम्म
खाई अहम्मपलोई, अहम्मपलज्जमाणा, अहम्भसमुदायारा, अहम्मणं चव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति एएसिणं सुत्तत्तं साहू ॥ एएणं जीवा मुत्ता समाणा णो बहूणं द्धिक जीयों सिद्ध होने से भविसिद्धिक रहित लोक नहीं होगा ॥ १५ ॥ अहो भगवन् ! क्या सोना
* प्रकाशक-राजाबहादूर लाला सुखदेवमहायजी मालाप्रसादजी *
भावार्थ
+ अहो भगवन् ! क्या समस्त जीव सोझगे? हां समस्त जीव सीझेंगे. यदि सीझे नहीं तो भवसिद्धिकपना होवे ई नहीं. और जब सब भवसिद्धिक सीझगे तब भवसिद्धिक शून्यतावाला लोक होवे ऐसा नहीं है. उस पर समय का दृष्टांत
बताते हैं. सर्व एव अनागतकालसमया वर्तमानतां लप्स्यन्ते । भवति स नामातीतः प्राप्तो यो नामवर्तमानत्वं । एष्यश्च नाम स भवति यः प्राप्स्याते वर्तमानत्वम् । अर्थात् जितने अनागत काल के समय हैं वे सब वर्तमानता को प्राप्त होते हैं
और वर्तमानवाले अतीत होते हैं, और जो वर्तमान को प्राप्त होगे सो अनागत है. परंतु अनागत समय रहित लोक कदापि नहीं होता है... .
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