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विवाह पण्णत्ति (भगवत्री) सूत्र 388
सव्वेविणं भंते ! भवसिाड़िया जीवा सिझिस्संति ? हेता जयंती ! सव्वेविणं भवसि. द्विया जीवा सिझिस्संति । जइणं भंते ! सब्वेवि भवसिद्धिया जीवा सिन्झिस्संति तम्हाणं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ ? जो इणटे समटे ॥ से केणं खाइण्णं १६८६ अटेणं भंते! एवं वुच्चइ सव्वेविणं भवसिद्धिया जीवा सिन्झिस्संति णो चेवणं भव. सिद्धिय विरहिए लोए भविस्सइ ? जयंती ! से जहा नामए सन्वागाससेढी सिया अणादिया अणवदग्गा परित्ता परिवुडा साणं परमाणुषोग्गलमत्तेहिं खंडेहिं समए २
अवहीरमाणी २ अणंताहिं उस्साप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरइ णो चेवणं अवहिरिया जीवों सीझेंगे. अहो भगवन् ! यदि सब भव्य जीवों सीझेंगे तब क्या भवसिद्धिक जीवों से रहित यह लोक होगा? अहो जयंती ! यह अर्थ योग्य नहीं है अर्थात् सब भवसिद्धिक जीवों से रहित यह लोक नहीं होगा. अहो भगवन् ! यह किस तरह कहा जाय कि सब भवसिद्धिक जीवों मीझेंगे परंतु भवसिद्धिये जीव रहित लोक नहीं होगा? अहो जप्ती! अनादि अनंत परित्त व समस्त लोकालोक में श्रेण्यांतर परिवृत्त आकाशश्रण है. उस में से प्रति समय परमाणु पुद्रमितमा खण्ड नीकालते २ अनंत अवम-34 पिणी उत्सपिणी तक नीकाले परंतु वह आकाश श्रेणी खाली ही होती है, वैसे ही जयंती सर्व ! मासि ।
*38* बारहवा शतक का दूसरा उद्देशा -१६
भावार्थ
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