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गए, मियावईवि पडिगया ॥ १२ ॥ तएणं सा जयंती समणोवासिया समणस् भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्ठ तुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंद णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी कहण्णं भंते ! जीव गुरुयत्तं हवमागच्छंति ? जयंती ! पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं एवं खलु जीवा गुरुयत्तं हन्व मागच्छति, एवं जहा पदम सए जाव वीईवयंति ॥ १३ ॥ भवसिद्धियत्तणं भंते ! जीवाणं किं सभावओय परिणामओय ? जयंती ! सभावओय णो परिणामओय ॥ १४ ॥ भावार्थ पीछी गई. उदायन राजा पीछा गया और मृगावती रानी भी पीछीगइ ॥ १२ ॥ श्री श्रमण भगवंत महा वीर स्वामी की पास से जयंती श्राविका धर्म सुनकर हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुई और श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोलने लगी कि अहो भगवन् ! जीव गुरुत्व कैसे प्राप्त { करता है ? अहो जयंती ! प्राणातिपात से यावत् मिथ्या दर्शन शल्य से जनेव गुरुत्व प्राप्त करता है. वगैरह जैसे प्रथम शतक में कहा वैसे ही जानना ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! क्या जीवों को भवसिद्धिकपना भाव से है या परिणाम से है ? अहो जयंती ! जीवों को भवसिद्धिकपना स्वभाव से है परंतु परिणाम से नहीं है || १४ || अहो भगवन् ! क्या सत्र भवसिद्धिक जीवों सीझेंगें ? हां १-२ स्वभाव जैसे पुद्गलका मूर्तत्य और परिणाम सो नहीं हुवे का होवे जैसे पुरुष की बाल्यावस्था में से तरुणावस्था.
जयंती ! सब भवसिद्धिक
सूत्र
२०३ अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
- प्रकाशक- सजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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