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शब्दार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 8.28
से वह उ० उदायन ग० राजा इ० इस क कथा को ल. प्राप्त होते ह० हृष्ट तुष्ट को० कौटुम्बिक पुरुषों । को स बोलाकर एक ऐसा व०बोला खि० शीघू दे देवानुप्रिय को० कौशाम्बी न० नगरी को स०आभ्यंतर
स० सर्व जा. यावत् प० पर्युपासना करे ॥ ६ ॥ त० तब सा. वह ज. जयन्ती स० श्रमणोपासिका ० इ० इस क० कथाको ल० प्राप्त होते ह० हृष्ट तुष्ट जे० जहां मि० मृगावती दे० देवी ते० तहां उ० आकर ए. ऐसा व० बोली ए. ऐसा ज० जैसे ण० नवमें शतक में उ० ऋषभदत्त जा० यावत् भ० होगा त.
से उदायणे राया इमीसे कहाए लढे समाणे हट्ठतुढे कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ २त्ता, एवं वयासी खिप्पामेघ भो देवाणुप्पिया ! कोसंबिं णयरिं सभितर बाहिरियं एवं जहा काणओ तहेव सव्वं जाव पज्जुवासइ ॥ ६॥ तएणं सा जयंती समणोवासिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठ तुट्ठा जेणव मिगावतीदेवी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता
एवं वयासी एवं जहा णवमसए उसभदत्तो जाव भविस्सइ तएणं सा मियावई देवी सुनकर बहुत हर्षित यावत् आनंदित हुए और कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाकर ऐसा बोले कि अहो देवानु-50 प्रिय ! कौशाम्बी नगरी को आभ्यंतर व बाहिर साफ करो वगैरह वर्णन जैसे कृणिक राजा का कहा
वो ही जानना ॥ ६॥ उस समय में जयंति श्रमणोपासिकाने इस बात को सुनी और हृष्ट तुष्ट बनकर | । मृगावती रानी की पास गई और जैसे नववे शतक में ऋषभदत्त ब्राह्मणने देवानंदा ब्राह्मणी को कहा ।
8842 बारहवा शतकका दूसरा उद्देशा 88