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________________ यावत् वि० विचरते हैं सु० सुदक्षु जागरिका जा० जागते हैं से० वह तेइसलिये गो० गौतम वुः कहा है। जाता है ति० तीन प्रकार की जा० जागरिका मा० यावत् सु० मुदक्षु जागरिका ॥ २५ ॥ त० तब से वह सं. शंख स० श्रमणोपासक स० श्रमण भ० भगन्त म० महावीर को वं० वंदन कर न०नमस्कार १६७३ कर ए. ऐमा व० बोले को० क्रोध वश से भ० भगवन् जी० जीव किं. क्या बंबांधे कि क्या ५० करे कि चि० दिने कि क्या उ० उपचिने सं० शंख को० क्रोधवश से जी० जीव आ आयुष्य व० वर्जकर जागरंति ॥ से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ तिविहा जागरिया जाव सुदक्खु जागरिया ॥ २५ ॥ तएणं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी कोह वसटेणं भंते ! जीवे किं बंधइ किं पकरेइ किं चिणाइ किं उवचिणाइ ? संखा ! कोहवसट्टेणं जीवा आउयवज्जाओ सत्त कम्मपग डीआ सिढिल बंधणबढ़ाओ एवं जहा पढमेसए असंवुडस्स अणगारस्स जाव अणु-. भावार्थ Fभाषा समिति यावत् गुप्त ब्रह्मचारी होते हैं वे अबुद्ध जागरणा जागते हैं और जो जीव का स्वरूप जाननेवाले श्रमणोपासक होते हैं वे सुदक्षु जागरणा नागते हैं इस से अहो गौतम ! तीन जागरणा कही गई है।।२५॥ * फोर वह शंख श्रमणोपासक श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर पूछने लगे कि अहो भगवन् ! क्रोध में वर्तता हुवा जीव क्या बांधता है, क्या करता है, क्या एकत्रित करता है ? अहो । * पंचमतङ्ग विवाह पण्णात्त ( भगवतः 480 बारहमा शतक का पहिला उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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