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शब्दार्थ
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8+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर ते. उन स० श्रमणोपासकों को एक ऐसा व० बोले मा० मत . अ० आर्यो तु० तुम सं० शंख म० श्रमणोपासक की ही. हीलनाकरो नि० निंदा करो खिं० खिसना करो अ० अवज्ञा करो सं० शंख स० श्रमणोपासक पि० मिय धर्मी द० दृढधर्थी सु० अच्छी जा० जागरणा जा० जगा ॥ २४ ॥ भ. भगवन् गो. गौतम स० श्रमण भ. भगवन्त म. महावीर को 4. वंदनकर ण. नमस्कार कर ए. ऐसा व. बोले क. कितने प्रकार की भं. भगवन जा० जागरणा गो• गौतम ति० तीन प्रकार की जा जागरणा ५० प्ररूपी बु बुद्ध जागरिका अ अबुद्ध जागरिका सु०
वासए एवं वयासी माणं अज्जो ! तुब्भे संखं समणोवासगं हीलह, निंदह, खिंसह, गरहह, अवमण्णह संखणं समणोवासए पियधम्मे चेत्र, दढधम्मे चैव, सुदक्खुजागरियं जागरिए ॥२४॥ भंतेत्ति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ २ ता णमंसइ २ त्ता एवं वयासी कइविहाणं भंते ! जागरिया पण्णत्ता ? गोपमा ! (तविहा जागरिया
पण्णत्ता तंजहा बुद्धजागरिया, अबुद्ध जागरिया, सुक्ख जागरिया । से केणटेणं । अहो आर्यो ! तुम शंख श्रमणोपासक की हीलना, निंदा, सिना व गर्दा मत करो, क्यों कि शंख श्रमणोपासक पिय धर्मा दृढ धर्मी है. इन्होंने प्रमाद रहित जागरणा की है ॥ २४ ॥ फीर भगवान् गौतम स्वामाई श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! जागरणा कितने ।
<PAPE0% बारहवा शतक का पहिला उद्देशा १४
भावार्थ|