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सूत्र
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 82
स्थान ५० प्ररूपे गो० गौतम अ० अप्रख्यात ठि० स्थित स्थान ज. जघन्य ठिक स्थिति ज. जैसे ने. नारकी न० विशेष प. प्रतिलोभ भं० भांगा भा० कहना या सर्व ता० तैते हो. हुवे लो० लोभयुक्त मा० मानयुक्त ए. इस अ० गमे स ने जानना जा. यावत् २० स्तमित कुमार न० विशेष ना. नाना प्रकार ना० जानना ॥ १८ ॥ अ० असंख्यात पु० पृथ्वी कायारासस० शत सहस्र में ए. एकेक पु० पृथ्वीकाया पास में पुः पृथ्वी काया के के कितनं ठि० स्थिनि स्थान गो. गौतम अ. असंख्यात
तहा, नवरं पडिलोमाभंगा भाणियव्वा, सवधि ताव होजा लोभोवउत्ताय माणोव उत्तेय, एएणं गमेणं नेयव्वं, जाव थाणिय कमारा नवरं नाणत्तं जाणियव्वं ॥ १८ ॥
असंखेजेसुणं भंते ! पुढवीकाइयावास सयसहस्सेसु एगमेगसि पुढविकाइयावाससि यहां पर उलटे कहना, क्योंकि देवता में लोभ की प्रबलता विशेष है. असंयोगी भांगा एक लोभवन्त वहृत द्विसंयोगी भांगे ६ लोभवन्त बहुत मायावन्त एक ऐसे करना. इसी तरह तवील भांगे जानना जैसे असुरकुमार का कहा वैसे ही स्तनित कुमार तक मब भुवरूपति का कहना. नरक व असुरकुमागाद भुवनपति में संघयण संस्थान लेश्या वगैरह में जो भिन्नता होगे सो विचार कर करता॥१८॥ अव स्थावर का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव के अख्यात वास में से एक२ आवास में रहनेवाले पृथ्वीकायिक जीव के कितने स्थिति स्थान कहे हैं ? जघन्य स्थिति स्थानक यावत् उत्कृष्ट
* प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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