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शब्दार्थ पत्तावीस भं० भांगा ॥ १६ ॥ ए. ऐने स० सात पु. पृथ्वी ने० जानना णा. नाना प्रकार ले० लेश्या ।
में का. कापोत दो० दो में त० तीसरी में मी० मिशनी.नील च. चौथी में पं. पांचवी में मी० मिश्र 120 कृष्ण त० पीछे ५० परम कृष्ण ॥ १७॥ च. चौसठ भं० भगवन् अ० असुर कुमार आ० आवास
१३९ २० शत सहस्र में ए० एकेक अ० असुर कुमारावास में अ० असुर कुमार की के० कितने ठि० स्थिति
णाणत्तं लेस्सासु ॥ गाहा-काओयदोस तइयाइ मीसिया नीलिया चउत्थीए ॥पंचमियाए मीसा, कण्हा तओ परमकण्हा ॥ १ ॥ १७ ॥ चउसट्टीएणं भंते ! असुरकुमारावास सयसहस्सेसु एगमेगंसि अनुरकमारावासंसि असुरकुमाराणं केवइया ठि
इट्ठाणा प०? गोयमा! असंखज्जा ठिइठाणा प० तंजहा जहण्णिया ठिई जहा नेरइया ।
पृथ्वी पर नानना. मात्र लेश्या में विशेषता है. रत्नप्रभा व शर्करप्रभा में कापोत लेश्या, तीमी बालु। भावार्थ
प्रभा में कापोत व नील, चौथी पंक प्रभा में नील, पांववी में नील कृष्ण, और छठी में कृष्ण और सातवी में महाकृष्ण ॥ १७ ॥ अव असुरकुमार देव का अधिकार कहते हैं अहो भगवन् ! असुर कुमार के ogo
१६४ लाख भवन कहे हैं उन प्रत्येक भवन में रहनेवाले असुर कुमार के कितने स्थिति स्थान कहे हैं ? 10 अहो गौतम ! अमुर कुमार के असंख्यात स्थिति स्थान कहे हैं. जघन्य स्थिति स्थानक वगैरह जैसे नार
काकी का कहा वैसेही जानना. इतना विशेष की नरक में क्रोधादि चार कषाय के जो भांगे कहे हैं
+88- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 2380%
१४ पहिला शतक का पांचवा उद्देशा
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