________________
१३८
शब्दाथ वचन जोगी का कायजोगी गोल गौतम तिः तीन इ. इस जा. यावत् म० मनजोग में व. वर्तते स०१
4 सत्तावाम भांगा ए. ऐसे का० कायजोग में ॥ १५ ॥ इ० इम जा. यावत् ने० नारकी सा० साकार युक्त [ अ० अनाकार युक्त गो० गौतम सा साकारयुक्त गो गीतम सा० साकारयुक्त अ० अनाकारयुक्त इ० इस जा० यावत् सा० साकार युक्त में वर्तते स० सत्तावीन भांगा एक ऐसे अ० अनाकाग्युक्त में स०
गोयमा ! तिण्णिवि ॥ इमीसेणं जाव मणजोए बंदृमाणा सत्तावीसं भंगा। एवं कायजोए ॥१५॥ इमीसणं जाव नेरइया किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोत्रउत्तावि अणागारोवउत्तावि ।। इमीसेणं जाव सागारोवउत्ते वट्टमाणा सत्तावीसं
भंगा । एवं अणागारोवउत्तेवि सत्तावीसं भंगा ।।१६॥ एवं सत्तवि पुढवीओ नेयव्वाओ . प्रभा के नारकी क्या मनयोगी, वचनयोगी व काययोगी है ? अहो गौतम ! तीन योगवाले हैं. इन तीनों योगवाले नारकी को सत्तावीस भांगे जानना ॥ १५ ॥ अब दशवा उपयोगद्वार. अहो भगवन् ! रत्नप्रभा के नारकी क्या मौकार वउत्ता हैं या अनाकारोवउत्ता हैं ? अहो गौतम ! साकारवाले हैं और अनाकारवाले भी हैं. साकार उपयोग युक्त नारकी वैसे ही अनाकार उपयोग युक्त नारकी में क्रोधादि कषाय के मत्तावीस भांगे जानना ।। १६ ॥ जैते रत्नप्रभा पृथ्वी पर दशद्वार कहे हैं वैसे अन्य शर्करादि ने
१ विशेषार्थग्राही ज्ञानोपयोग. २ सामान्यार्थग्राही दर्शनोपयोग.
अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावाश