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________________ शब्दर्थ। थ्या दर्शन में अ. अम्मीभांगा ॥१३।। इ• इस जा यावत् । क्या ना ज्ञानी अ० अज्ञानी गो गौतम ना ज्ञानी अ० अज्ञानी ति तीन ना. ज्ञान नि० निश्चय तिः तीन अ० अज्ञान भ० भजना इ. इस भ30 ७ भगवन् जा० यावत् आ० मतिज्ञान में व० वर्तते गो० गौतम स० सत्तावीस भांगा ए० ऐसे ति० तीन ज्ञान ति० तीन अ० अज्ञान भा० कहना ॥ १४ ॥ इ० इस जा० यावत् किं. क्या म० मनजोगी व० इमीसेणं जाव किं णाणी अण्णाणी ? गोयमा ! गाणीवि, अण्णाणीवि. तिण्णिणाणाई नियमा, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए । इमीसेणं भंते ! जाव आभिणियोहियणाणे वट्टमाणे ? गोयमा ! सत्तावीसं भंगा ॥ एवं तिण्णि णाणाई तिण्णि अण्णाणाई भाणियव्वाइं ॥१४॥ इमीसेणं जाव किं मणजोगी वयजोगी कायजोगी ? भावार्थ जानना ॥ १३ ॥ आठवा ज्ञानद्वार. अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा में नारकी क्या ज्ञानी है ? क्या अ ज्ञानी है ? अहो गौतम ! . रत्नप्रभा नामक नरक में नारकी को तीन ज्ञान की नियमा है और तीन अ-3, ज्ञान की भजना है. मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान, अबाधिज्ञान वैसे ही मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान व विभंग ज्ञान% 50 युक्त नारकी को सत्तावीस भांगे जानना. असंज्ञी की अपेक्षा से उत्पन्न होते समय अंतर्मुहूर्त पर्यंत दो अज्ञान की विवक्षा की जावे तो अस्मी भांगे पाते हैं. उस के अल्पपने के कारन से अवगाहग भी अल्प 10 रहती है ओर काल भी अल्प रहता है. ॥ १४ ॥ अथ नवा योगदार कहते हैं. अहो मगवनू ! रत्न-1 4848 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती) सूत्र gical 8603> पहिला शतकका पांचवा उद्देशा 98880
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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