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शब्दार्थ
भावार्थ
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| कितनी ले० लेया गो० गौतम ए० एक का० कापोतलेश्या इ० इस भै० भगवन् र० रत्नप्रभा जा० यावत् का कापोत लेश्या में वर्तते समन्तात्री न भं० भांगा ॥ १२॥ इ० इस भं० भगवन् जा०यावत् किं० क्या स० समष्टि मि निथ्यादृष्टि स० समनिध्यादृष्टि गो० गौतमतिः तीन इ० इस जा० यावतु स० सम्यक् दर्शन में व० वर्तते ने० नारकी स० रुतावीस भांगा ए० ऐसे मि० मिथ्या दर्शन में स० सममि
०३ अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कइलेस्माओ प० ? गोयमा ! एगा काउलेस्सा प० । इमीसणं भंते ! रयणप्प गए जाव काउलेस्साए वहमाणा सत्तावीसं भंगा ॥ १२ ॥ इमसणं भंते ! जाव किं सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्ठी ? गोयमा ! तिष्णिवि ॥ इमीलेणं जाब सम्मदंसणे वट्टमाणा नेरइया स त्तावीस भंगा एवं मिच्छदंसणेवि सम्मामिच्छ दंसणे असीइ भंगा ॥ १३ ॥
कितनी लेश्याओं कहीं ? अहो गौतम ! रत्नप्रभा कापुत लेश्यावाले नारकी को भी क्रोधादि कषाय के अहो भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी में क्या नारकी सम सम, मिथ्या, व सममिथ्या ऐसे तीनों दृष्टि हैं. विध्या दृष्टिवाले नारकी में अस्ती भांग
भगवन् ! रत्नप्रभा नामक पृथ्वी में नारकी को पृथ्वी में नारकी को एक मात्र कापुन लेश्या कही. ( सत्तावीस भांग जानना || १२ || मातवा दृष्टिद्वार दृष्टि, मिथ्या दृष्टि या सममियादृष्टि हैं ? अहो गौतम ! समदृष्टि व मिथ्या दृष्टिले नारकी में सचावीत भांग व
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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