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शब्दार्थ. म. महावीर को 4. वंदना कर ण. नमस्कार कर तः वहां से प० पीछे आते प. पाक्षिक पो० *
पौषध पा. पारने को त्ति ऐसा क० करके एक ऐसा स० विचार कर क. कल जा. यावन् ज० Eजलंत पो० पौषध शाला में से प० निकलकर मु० शुद्ध पा० प्रवेश करने योग म० मंगलिक व वस्त्र
प० श्रेष्ट ५० पहिना हुवा मा० अपने गि० गृह मे ५० नीकल कर पा० पाद विहार से सा० श्रावस्ती ण. नगरी के म० बिच में जा० यायत प० पर्युपासना की अ० अभिगम न० नहीं है ॥ २० ॥ त० तब
नमांसत्ता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तए तिकटु, एवं संपेहेइ २ त्ता कलं जाव जलंते पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता सुद्धाप्पावेसाइं मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता पायविहारचारेणं सावत्थि णयरिं मझं मझेणं जाव पज्जुवासइ, “ अभिगमोनत्थि” ॥ २० ॥
तएणं ते समणोवासगा कलं पादु जार जलंत पहाया कय जाव सरीरा सएहिं भावार्थ श्रेय है. ऐसा विचारकर प्रभात होते पौषधशालामें से नीकलकर, शुद्ध परिषदामें प्रवेशन करने योग्य मंग
लीक श्रेछ वस्त्र धारण कर स्वगह से नीकलकर. पग से चलते हुए श्रावस्ती नगरी की बीच में होकर श्रमण ल भगवंत महावीर स्वामी की पास आये. और वंदना नमस्कार कर यावत् पर्यपासना करने लगे. इन में से 1-अभिगम नहीं है क्यों कि वह पौषध व्रत में था ॥ २० ॥ अन्य सब श्रमणोपासकने प्रभात होते स्नान
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *