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शब्दार्थ
दे देवानप्रिय तु० तुम वि० विपुल अ० अशन जा. यावत वि० विचरो सं• शंख स० श्रमणो-3 पासक नो नहीं आ० आता है ॥ १८ ॥ व. तब ते० वे स० श्रमणोपासक वि० विपुल अ० अशन ४* आ० आस्वादते जा यावत् वि० विचरते थे ॥ ११ ॥ त० तब तक उस सं० शंख स. श्रमणो
१६६७ पासक को पु० पूर्व रात्रि में ध० धर्म जागरणा जा० करते अ० यह एक ऐसा जा० यावत् स. उत्पन्न
हुआ से श्रेय मे० मुझे क० कल पा० प्रभात में जा. यावत् ज० ज्वलंत स० श्रमण भ० भगवन्त सत्र
पोसहिए जाव विहरइ तं छंदेणं देवाणुप्पिया! तुब्भे विउलं असणं ४ जाव विहरह संखणं समणोवासए णो हव्व मागच्छइ ॥ १८ ॥ तएणं ते समणोवासगा तं विउलं असणं ४ आस्साएमाणा जाव विहरंति ॥ १९ ॥ तएणं तस्स संखस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म जागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाव
समुप्पाजत्था, सेयं खलु मे कलं पादु जाव जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता भावार्थ । इच्छानुसार अशनादि भोगवकर पाक्षिक पौषध करते हुवे विचरो. शंख श्रमणोपासक अभी नहीं आसकते।
हैं ॥ १८ ॥ फोर वे श्रमणोपासक उस विपुल अशनादि आस्वादते हुवे विचरने लगे ॥१९॥ उस समय में }eo शंख श्रमणोपासक को पूर्व रात्रि में धर्म जागरणा करते हुवे ऐसा अध्यवसाय हुवा कि कल प्रभात में सूर्योदय होने श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर वहां से आये पीछे पौषध व्रत पालना मुझे ।
- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <oggig
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