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शब्दार्थ पृथक् मा० माला प० वर्णक वि० विलेपन णि दूरकिया सशस्त्र मु० मुशल ए. एक अ० अद्वितीय द.
दर्भ संथारेपर अ० रहा हुवा प० पाक्षिक पौषध ५० पालते वि. विचरने को त्ति ऐसा क० करके ए० ऐसा सं. विचारकर जे. जहां सा० श्रावस्ती ण नगरी जे. जहां स० स्वगृह जे. जहां उ० उत्पला स० अरणोपासिका ते• वहां उ० जाकर उ० उत्पला स• श्रमणोपासिकाको आ० पूछकर जे० जहां पो. पौषध शाला ते. वहाँ उ० जाकर पा० पौषध शाला में अ० प्रवेशकर पो० पौषध शाला को प०अपार्जकर
गय मालावण्णग विलवणस्स णिक्खित्तसत्थ मुसलस्स एगस्स अबितियस्स दब्भसंथारोवगयस्स पक्खिय पोसहं पडिजागरभाणस्स विहरित्तए त्तिकटु, एवं संपेहेइ २ त्ता, जेणेव सावत्थी णयरी जेणेव सए गिहे जेणेव उप्पला समणोवासिया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, उप्पलं समणोवासियं आपुच्छइ २ त्ता, जेणेव पोसह सालाए तेणेव
उवागच्छइ २ त्ता पोसहसालं' अणुप्पविसइ २ ता पोसहसालं पमज्जइ २ त्ता, भावार्थ करके, माला, वर्ण, विलेपन को दूर करके, शस्त्र शलादि दूर करके, एक दर्भ संथारावाला पाक्षिक पौषध
करते हुवे विचरना मुझ श्रेय है. एसा विचार करके श्रावस्ती नगरी में अपने गृह में उत्पला नामक अपनी |+भार्या की पास आया, और उन को पूछकर पोषधशाला में गया. वहां पर पौषशाला पूंजकर, उच्चार
२१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *