________________
to
२०
शब्दार्थ करते ५० भोगते १० पाक्षिक पो० पौषध प० पालते हुवे वि० विचरेंगे ॥ १॥ त० तब ते० वे .स०
श्रमणोपासक स० शंख स० श्रमणोपासक की ए. इस अ० बात को वि० विनय से प० मुनी ॥१०॥ त० तब तक उस सं० शख श्रमणोपासक को अ० यह ए० ऐसा अ० अध्यवसाय स० हुवा णो नहीं मे० मुझे से श्रेय तं उस वि०बहुत अ० अशन जा यावत् सा स्वादिम आ०आस्वादते ५०पाक्षिक पो पौषध ५० पालते वि० विचरने को से० श्रेय मे० मुझे पो पौषध बं० ब्रह्मचारी उ० खाग म० मणि सु० सुवर्ण व.
भुजेमाणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो ॥ ९॥ तएणं ते समणोवा. सगा संखस्स समणोवासगस्स एयमटुं विणएणं पडिसुगृति ॥ १० ॥ तएणं तस्त संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अब्भत्थिए जाव समुप्पजित्था, णो खलु मे सेयं तं विउलं असणं जाव साइमं आसाएमाणस्सय पक्खिय पोसहं पडिजागरमाणस्स
विहरित्तए, सेयं खलु मे पोसहसालाए पोसहियरस बंभचारिस्स उम्मुक्कमणि सुवण्णस्स,ववमोगवेगे. फीर पखिका पोषध कर जागरणा जागते हुवे विचरेंगे ॥९॥ उन अन्य श्रावकोंने शंख से श्रमणोपासक की इस बात को विनय पूर्वक सुनी ॥ १०॥ फीर उस शंख श्रमणोपासक को ऐसा अध्य-ope
वसाय उत्पन्न हुवा कि अशन, पान, खादिम व स्वादिम इन घरों का आहार करके पखी पौषध करते * हुने विचरना मुझे श्रेय नहीं है; परंतु पौषधशाला में पौषध युक्त, ब्रह्मचर्य सहिन, मणि सुवर्ण का साग |
पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती) सूत्र 488%
बारहवा शतक का पहिला उद्देशा 8
भावाथे
488