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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी (स० श्रमण भ० भगवन्त ममहावीर की अं० पास से को कोष्टक चे उद्यान में से प० नीकलकर जे० जहां सा० श्रावस्ती ण० नगरी ते ० तहां प० नीकला ग० जाने को ॥ ८ ॥ त तब से उस शं० शंख श्रमणोपासकने ते० उन स० श्रमणोपासकों को ए० ऐसा व० बोले तु० तुम देव देवानुप्रिय वि० बहुत [अ० अशन पा० पान खा० खादिम सा० स्वादिम ७० तैयार करो त तब अ हम तं० उस वि० बहुत अ० अशन पा० पान खा० खादिम सा० स्वादिम को आ० आस्वादते वि० विशेष आस्वादते प० विभाग अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमति २ त्ता जेणेव सावत्थी णयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ ८ ॥ तणं से संखे समणोबासए ते समणोवासए एवं वयासी तुज्झेणं देवाणुप्पिया ! विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह, तणं अम्हे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आस्सादेमाणा विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिमहावीर स्वामी की पास धर्म सुनकर, अवधारकर हृष्ट तुष्ट हुवे, और श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार किया. फीर कितनेक प्रश्नों पूछकर उनके अर्थ ग्रहण किये. फीर अपने स्थान से उठकर कोष्टक उद्यानमेंसे नीकलकर श्रावस्ती नगरी में जाने को नीकले ॥ ८ ॥। उस समय में शंख श्रमणो पासक उन अन्य श्रमणोपासकों को ऐसा वोले कि अहो देवानुप्रिय ! तुम विपुल - अशन, पान, खादिम व {स्त्रादिम तैयार करो, और अपन सब उस अशनादि को आस्वादेंगे, विस्वादेंगे, परस्पर विभाग करेंगे और १६५८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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