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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
48508 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
॥ द्वादश शतकम् ॥
सं० शंख ज० जयंति पु० पृथ्वी पो० पुद्गल अ० अतिपात रा० राहु लो० लोक ना० नाग दे० देव {आ० आत्मा बा० वारहवे स० शतक में द० दश उ० उद्देशे ॥ १ ॥ ते० उस का० काळ ते ० उस स० समय में सा० श्रावस्ती णा० नाम नगरी हां० थी व० वर्णन से को० कोष्टक चे० उद्यान व० वर्णन से त० उस सा० श्रावस्ती ण० नगरी में ब० बहुत सं० शंख प० प्रमुख स० श्रमणोपासक प० रहते थे अ संखे, जयंति, पुढवी । पोग्गल, अइवाय, राहु, लोगेय | नागेय देवआता । बारसम सदसुदेसा ॥ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थीणामं णयरी होत्था, वण्णओ age are aणओ, तत्थणं सावत्थीए णयरीए बहवे संखप्पमोक्खा समणोवासगा अग्यारहवे शतक में विविध अर्थ कहे, अत्र आगे भी वैसाही कथन करते हैं. इस बारहवे शतक में दश उद्देशे कहे ? शंख श्रमणोपासक का, २ जयंति श्राविका, ३ रत्नप्रभा पृथ्वी का ४ पुद्गल विचार ५ मा णातिपात का ६ राहू की वक्तव्यता ७ लोक की वक्तव्यता ८ नाग की वक्तव्यतां ९ देवता की वक्त(व्यता १० आत्म भेद निरूपण. अब इन में से प्रथम शंख श्रमणोपासक का कथन करते हैं ॥ १ ॥ उस काल उस समय में श्रावस्ती नामक नगरी थी. उस की ईशान कौन में कोष्टक नामक उद्यान था. उस श्रावस्ती नगरी में शंख प्रमुख श्रमणोपासक रहते थे. वे ऋद्धिवंत यावत् अपरिभूत व जीवाजीव के
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4848 वारहवा शतकका पहिला उद्देशा
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