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________________ शब्दार्थ ऐसा ५० प्ररूपता हू शेष पूर्ववत् ॥ १७ ॥ अ० हैं भं• भगवन् सो० सौधर्म क• देवलोक में द० द्रव्य, स० वर्ण सहित अ० वर्ण रहित त० तैसे जा० यावत् ६० हां अ० है ए० ऐसे ई० ईशान में भी जा० यावत् अ० अच्युत ए० एसे गे० ग्रैवेयक वि. विमान में अ० अनुत्तर विमान में ई० ईषत्मागभार जा. यावत् हं० हां अ०है. ॥ १८ ॥ त० तब सा. वह म० बडी जा० यावत् प० पीछी ॥ ११ ॥ त० तब आ० आलंभिका ण. नगरी में सिं० शंगाटक ति० त्रिक ण. शेष ज. जैसे सि.शिव जा. यावत् स. सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता, तेणपरं वोच्छिण्णा देवाय देवलोगाय ॥ १७ ॥ अत्थिणं भंते! सोहम्मेकप्पे दवाइं सवण्णाइंपि अवण्णाइंपि तहेव जाव हंता अत्थि ॥ एवं ईसाणवि, एवं जाव अच्चुएवि, एवं गेविजविमाणेसु, अणुत्तरविमाणेसु ईसिप्पभाराएवि जाव हंता अत्थि ॥ १८ ॥ तएणं सा महइ महालिया जाव पडिगया ॥१९॥ तएणं आलंभियाए णयरीए सिंगाडगतिग अवसेसं जहा सिवस्स जाव सव्व भावार्थ स्थिति है और एक, दो, तीन, यावत् दश, संख्यात व असंख्यात समय अधिक करते उत्कृष्ट तेत्तीस सागरो-3 al पम की स्थिति है. इस से आगे देवलोक में देवता की स्थिति नहीं है ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! सौधर्म देवलोक में क्या द्रव्य सवर्णवाले या अवर्णवाले हैं ? हां गौतम ! ऐसे ईशान यावत् अच्युत, नवग्रैवेयक, * पांच अनुत्तर विमान व इषत् मागभार पृथ्वी तक कहना ॥ १८ ॥ फीर वह परिषदा पीछी गई ॥ १९ ॥ फीर उस आलंभिका नगरी में शृंगाटकत्रिक चौक यावत् महापथ में ऐसा वार्तालाप होने लगा कि पुद्गल । पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 880 4848 अग्यारवा शतक का बारहवा 488
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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